आज हम राज्यों में राष्ट्पति शासन के बारे में बात करेंगे।
वास्तव में भारतीय संविधान में 'राष्ट्रपति शासन' इस शब्द का कहीं पर भी उल्लेख नहीं है। संविधान में अनुच्छेद 356 के अनुसार राष्ट्रपति को ये विशेष शक्तियाँ दी गयी है। चूँकि इस अवस्था में राष्ट्रपति के हाथो में शासन होता है इसलिए इसे राष्ट्रपति शासन कहा जाता है। राज्यों में सबसे पहले पंजाब में 1951 में अनुच्छेद-356 लगाया गया था। संविधान का निर्माण करने वाली समिति ने कहा था कि अनुच्छेद-356 की भारत में कभी आवश्यकता नहीं पड़ेगी। मगर समय समय पर राजनितिक दलों के अस्थिरता व् अपनी मनमानी के कारण राज्यों में इसे लागू करती रही है।
राज्यों में अनुच्छेद-356 लगाने के निम्नलिखित कारण हो सकते है -
- राज्य में चुनाव के बाद दलो द्वारा स्थिर सरकार न बना पाने की स्तिथि में राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है।
- राज्य की सरकार द्वारा केंद्र सरकार की नीतियों को पालन न करने पर रज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है।
- राज्य की सरकार द्वारा सरकार को सही तरीके से न चला पाने की स्तिथि में केंद्र सरकार अपने विवेक से राष्ट्रपति शासन को लागू करा सकती है।
- राज्यों में उत्पन्न राजनैतिक अस्थिरता या किसी दाल द्वारा सरकार न बनाये जा सकने की स्तिथि में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है।
राज्य में राष्ट्रपति शासन कैसे लगता है ?
- उपर्युक्त कारणों में से कोई भी स्तिथि उत्पन्न होने पर राज्य के राज्यपाल केंद्र सरकार को एक रिपोर्ट भेजते है। केंद्र सरकार कैबिनेट मीटिंग करके राष्ट्रपति शासन को मंजूरी देती है। उसके बाद संसद के दोनों सदनों की अनुमति के बाद राष्ट्रपति राज्य में अनुच्छेद-356 घोसित कर देते है।
राज्य में राष्ट्रपति शासन लगने के बाद क्या होता है ?
- राज्य में राष्ट्रपति शासन घोषित होने के बाद राष्ट्रपति राज्य की समस्त कार्यो को अपने हाथ में ले लेते है। राज्य के उच्च न्यायालय को छोड़कर समस्त सरकारी कार्यालयो में राष्ट्रपति का अधिकार हो जाता है। राज्य सरकार के सभी कार्य अब राष्ट्रपति के हाथो में चले जाते है।
राष्ट्रपति शासन की अवधि -
- राष्ट्रपति शासन की अवधि सामान्यत: 6 माह की होती है जिसे 1 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है। विषम परिस्थिति में राष्ट्रपति शासन को अधिकतम 3 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
राष्ट्रपति शासन को हटवाने का तरीका -
- यदि राज्य के दल राज्यपाल के राष्ट्रपति शासन को लागू करने से सहमत नहीं है तो वे न्यायालय की सहायता ले सकते है।