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Showing posts from November, 2019

गति व गति के नियम

आज हम गति व गति के नियम का अध्ययन करेंगे। दूरी Distance , विस्थापन Displacement ,चाल Speed , वेग Velocity , गति के नियम Laws of Motion , वृत्तीय गति Circular Motion , कोणीय वेग Angular Velocity  दूरी Distance , विस्थापन Displacement ,चाल Speed , वेग Velocity , गति के नियम Laws of Motion , वृत्तीय गति Circular Motion , कोणीय वेग Angular Velocity दूरी Distance , विस्थापन Displacement ,चाल Speed , वेग Velocity , गति के नियम Laws of Motion , वृत्तीय गति Circular Motion , कोणीय वेग Angular Velocity दूरी Distance , विस्थापन Displacement ,चाल Speed , वेग Velocity , गति के नियम Laws of Motion , वृत्तीय गति Circular Motion , कोणीय वेग Angular Velocity दूरी Distance , विस्थापन Displacement ,चाल Speed , वेग Velocity , गति के नियम Laws of Motion , वृत्तीय गति Circular Motion , कोणीय वेग Angular Velocity दूरी Distance , विस्थापन Displacement ,चाल Speed , वेग Velocity , गति के नियम Laws of Motion , वृत्तीय गति Circular Motion , कोणीय वेग Angular Velocity ...

चीफ जस्टिस ऑफिस हुआ 'सुचना के अधिकार' में शामिल

सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया है जिसके अनुसार अब से सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश भी सुचना के अधिकार कानून के दायरे में आएंगे। यानी अब से मुख्य न्यायधीश के दफ्तर से कोई सुचना प्राप्त की जा सकती है। अब से सीजेआई कार्यालय भी सार्वजानिक प्राधिकरण के अंतर्गत आ जाएगा। क्या है 'सुचना का अधिकार' ? सुचना का अधिकार कानून-2005 के अनुसार कोई भी नागरिक उन सूचनाओं को जानने का अधिकार रखता है जो सांसदों , विधायकों या किसी अन्य को दी जा सकती हो। पहले कुछ राज्यों को छोड़कर किसी के पास सुचना का अधिकार नहीं होता था लेकिन 2005 से सुचना का अधिकार कानून बनने के बाद अब कोई भी किसी सूचना को जानने का अधिकार रखता है। कौन-कौन है शामिल ? सुचना क अधिकार कानून के दायरे में सभी सरकारी दफ्तर , प्रधानमंत्री कार्यालय , मुख्यमंत्री कार्यालय , और अन्य कई विभाग शामिल है। अब से सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश का कार्यालय भी इसमें शामिल हो जाएगा। किस-किस को है सुचना का अधिकार ? भारत का नागरिक होना चाहिए  किसी कंपनी का मालिक न हो , उस कंपनी का कोई कर्मचार...

राज्यों में राष्ट्रपति शासन - अनुच्छेद-356

आज हम राज्यों में राष्ट्पति शासन के बारे में बात करेंगे। वास्तव में भारतीय संविधान में ' राष्ट्रपति शासन ' इस शब्द का कहीं पर भी उल्लेख नहीं है। संविधान में अनुच्छेद 356 के अनुसार राष्ट्रपति को ये विशेष शक्तियाँ दी गयी है। चूँकि इस अवस्था में राष्ट्रपति के हाथो में शासन होता है इसलिए इसे राष्ट्रपति शासन कहा जाता है। राज्यों में सबसे पहले पंजाब में 1951 में अनुच्छेद-356 लगाया गया था। संविधान का निर्माण करने वाली समिति ने कहा था कि अनुच्छेद-356 की भारत में कभी आवश्यकता नहीं पड़ेगी। मगर समय समय पर राजनितिक दलों के अस्थिरता व् अपनी मनमानी के कारण राज्यों में इसे लागू करती रही है। राज्यों में अनुच्छेद-356 लगाने के निम्नलिखित कारण हो सकते है - राज्य में चुनाव के बाद दलो द्वारा स्थिर सरकार न बना पाने की स्तिथि में राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है।  राज्य की सरकार द्वारा केंद्र सरकार की नीतियों को पालन न करने पर रज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है।  राज्य की सरकार द्वारा सरकार को सही तरीके से न चला पाने की स्तिथि में केंद्र सरकार अपने विवेक से ...

प्रतीक एवं नाम कानून-1950 में बड़ा बदलाव

केंद्र सरकार लगभग 70 साल पुराने 'प्रतीक एवं नाम कानून-1950 ' में संशोधन करने जा रही है। अगर सबकुछ प्लान के मुताबिक रहा तो संसद के शीतकालीन सत्र में ही सरकार इस कानून में बदलाव करने की कोशिश करेगी। उपभोक्ता मामलो के मंत्रालय ने कानून मंत्रालय की सहायता से इस पुराने कानून में बदलाव करने का ड्राफ्ट तैयार कर लिया गया है। क्या है 'प्रतीक एवं नाम कानून -1950 ' ? दरअसल यह एक 1950 में बनाया गया कानून है जिसके अंतर्गत अगर कोई कंपनी या अन्य व्यक्ति अपने निजी लाभ के लिए या गैरकानूनी तरीके से किसी के नाम या चित्र को प्रयोग करता है तो उससे  जुर्माना लिया जाता है। इसके अंतर्गत 500 रूपए तक के जुर्माने का प्रावधान है। अभी हाल ही में एक कंपनी के मोदी जी के चित्र का उपयोग करने के बाद सरकार ने इस मामले में कानून में बदलाव को मंजूरी दी है। अब इस कानून में संशोधन के बाद इसमें जुर्माने की राशि और कैद का भी प्रावधान किया जायेगा। उपभोक्ता मामलो के मंत्रालय से प्राप्त सुचना के अनुसार कानून में संशोधन के बाद जुर्माने की राशि लगभग एक हज़ार गुना (5 लाख तक ) बढ़ा दी जायेगी।  इसके साथ...