इस ICC टी-20 विश्व कप में लगभग हर मैच वही टीम जीती है जिसने या तो टॉस जीतकर पहले गेंदबाज़ी की या फिर पहले गेंदबाज़ी की। ऐसा इसलिए हुआ क्योकि इस विश्व कप में औंस ने बड़ी भूमिका निभाई है।
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लगभग पिछले तीन हफ्तों से चल रहे ICC T-20 विश्व कप का 14 नवम्बर को समापन हो गया। फाइनल मुकाबले में ऑस्ट्रेलिया ने न्यूज़ीलैण्ड को 8 विकेटों से हराकर पहली बार यह ख़िताब अपने नाम किया। एक बार फिर टॉस जीतने वाली टीम मैच जीत गयी। किन्तु क्या क्रिकेट के भविष्य के लिए ये सही है?
इस ICC टी-20 विश्व कप में लगभग हर मैच वही टीम जीती है जिसने या तो टॉस जीतकर पहले गेंदबाज़ी की या फिर पहले गेंदबाज़ी की। ऐसा इसलिए हुआ क्योकि इस विश्व कप में औंस ने बड़ी भूमिका निभाई है। पुरे सीजन में दूसरी पारी में बल्लेबाजी करना बेहद आसान रहा है और फाइनल में भी कुछ ऐसा ही हुआ।
टॉस जीतने के साथ ही ये लगभग पहले ही तय हो चुका था की ऑस्ट्रेलिया इस बार चैंपियन बन चुकी है किन्तु विपक्षी टीम ने फिर भी अंत तक संघर्ष किया। अब सवाल ये उठता है कि क्या इस प्रकार टॉस का मैच के परिणाम में हस्तक्षेप ठीक है। जी नहीं। क्योकि यदि क्रिकेट मैच के फैसले टॉस के आधार पर होने लगे तो फिर पूरा मुकाबला खेलने का क्या फायदा ?
इस प्रकार के परिणामो के कारण टॉस के बाद ही टॉस हारने वाली टीम का मनोबल टूट जाता है जो आगे उनके संघर्ष को भी न्यून कर देता है। व टीम पूरे मुकाबले में पीछे ही रहती है और अंततः मैच हार जाती है।
अब वक़्त आ गया है कि टॉस की बादशाहत को ख़त्म किया जाए। इसके लिए जरूरी है कि पिच को औंस आदि के अनुसार तैयार किया जाये। ताकि दूसरी पारी में भी गेंदबाज़ पूरे जी जान से गेंदबाज़ी कर सके। या फिर इस तरह के बड़े टूर्नामेंट को दिन के समय या दोनों पारिया देर रात में ही कराई जाये। एक अन्य विकल्प हो सकता है की द्वितीय पारी के समय गेंदबाजों को दो या अधिक नई गेंदे उपलब्ध कराई जाये। अन्यथा आने वाले वक़्त में टॉस ही क्रिकेट के परिणामो का बॉस होगा।
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